Not known Facts About Shodashi
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Inspiration and Empowerment: She's a image of strength and braveness for devotees, particularly in the context with the divine feminine.
The worship of those deities follows a selected sequence referred to as Kaadi, Hadi, and Saadi, with Just about every goddess affiliated with a specific approach to devotion and spiritual observe.
The reverence for Goddess Tripura Sundari is obvious in just how her mythology intertwines While using the spiritual and social cloth, presenting profound insights into the character of existence and The trail to enlightenment.
संहर्त्री सर्वभासां विलयनसमये स्वात्मनि स्वप्रकाशा
वर्गानुक्रमयोगेन यस्याख्योमाष्टकं स्थितम् ।
Goddess Shodashi is frequently connected with attractiveness, and chanting her mantra inspires internal attractiveness and self-acceptance. This advantage encourages individuals to embrace their genuine selves and cultivate self-assurance, helping them radiate positivity and grace inside their everyday life.
षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम here से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरी पञ्चरत्न स्तोत्रं ॥
श्वेतपद्मासनारूढां शुद्धस्फटिकसन्निभाम् ।
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach
संकष्टहर या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि – sankashti ganesh chaturthi
॥ ॐ क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्रीं ॥
स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।